Friday, August 12, 2016

अध्याय: २८ - पञ्चमीविभक्ति:

अध्याय: २८ - पञ्चमीविभक्ति:

अभ्यासः २८.१ (पृष्ठसङ्ख्या १०९)

देशात्               देशाभ्याम्            देशेभ्य:
कोशात्             कोशाभ्याम्          कोशेभ्य:
विद्यालयात्        विद्यालयाभ्याम्     विद्यालयेभ्य:
गुहाया:              गुहाभ्याम्             गुहाभ्य:
स्थालिकाया:      स्थालिकाभ्याम्     स्थालिकभ्य:
वीथ्या:               वीथीभ्याम्            वीथीभ्य:
घट्या:               घटीभ्याम्             घटीभ्य:
दर्व्या:                दर्वीभ्याम्             दर्वीभ्य:
राज्यात्              राज्याभ्याम्          राज्येभ्य:
यते:                   यतिभ्याम्             यतिभ्य:
अतिथे                अतिथिभ्याम्        अतिथिभ्य:
साधो:                 साधुभ्याम्            साधुभ्य:
वस्तुन:                वस्तुभ्याम्            वस्तुभ्य:
नेतु:                    नेतृभ्याम्              नेतृभ्य:
सूक्ते:                 सूक्तिभ्याम्           सूक्तिभ्य:
संस्कृत्या:            संस्कृतिभ्याम्        संस्कृतिभ्य:
धेन्वा:                  धेनुभ्याम्              धेनुभ्य:

अभ्यासः २८.२ (पृष्ठसङ्ख्या १०९)
१. अश्व: ग्रामात् आगच्छति|
२. कङ्कणम् हस्तात् पतति | 
३. हार: कण्ठात् पतति |
४. वृष्टि: आकाशात् पतति |
५. यात्रिक: भोजनशालाया: आगच्छति |
६. नदी गिरे: प्रवहति |
७. जलम् द्रोण्या: पतति |
८. भक्त: काश्या: आगच्छति |
९. क्षीरम् धेन्वा: आगच्छति |
१०. प्रकाश: भानवो: आगच्छति | 
११. तैलम् वाहनात् पतति |
१२. नदी शिखरात् प्रवहति |

अभ्यासः २८.३ (पृष्ठसङ्ख्या ११०)
१. बालक: मित्रात् वाहनं स्वीकरोति |
२. बालक: मातु: भोजनं स्वीकरोति |
३. बालक: पितु: वस्त्रं स्वीकरोति |
४. बालक: धेन्वा: क्षीरं स्वीकरोति |
५. बालक: नद्या: जलं स्वीकरोति |
६. बालक: गिरे: सस्यं स्वीकरोति |
७. बालक: वैद्याया: स्वीकरोति |

८. बालक: गुरो: पुस्तकं स्वीकरोति |

अभ्यासः २८.४ (पृष्ठसङ्ख्या ११०)
यात्रिक: गृहात्  हरिद्वारं गच्छति |
यात्रिक: हरिद्वारात् हिमगिरिं गच्छति |
यात्रिक: हिमगिरे: काशीं गच्छति |
यात्रिक: काश्या: मथुरां गच्छति |
यात्रिक: मथुराया: रामेश्वरं गच्छति |
यात्रिक: रामेश्वरात् गृहं गच्छति |

अभ्यासः २८.५.१ (पृष्ठसङ्ख्या ११०)
१. विदेशात् जना: भारतदेशे आगच्छति |
२. पक्षिण: दूरात् सरोवरं प्रति गच्छन्ति |
३. बीजात महान् वृक्ष: उद्भवति | 
४. तस्या: वीथ्या: रथयात्रा चलति |
५. पुष्पं वृक्षात् पतति |
६. लताभ्य: पर्णानि पतन्ति |
७. कर्ण: कर्णाभ्यां कुण्डलानि निष्कास्य दत्तवान् | 
८. अग्ने: ज्वाला: प्रचण्डा: उद्भवन्ति |
९. भक्त: विष्णो: वरं प्राप्नोति | 

१०. सवितु: प्रकाश: आगच्छति |

अभ्यासः २८.५.२. (पृष्ठसङ्ख्या १११)
१. नगरात् बहि: नदी प्रवहति|
२. प्रकोष्ठात् बहि: बाला: क्रीडन्ति|
३. गृहात बहि: वृक्षा: सन्ति|
४. वाटिकाया: बहि: मार्गा: सन्ति|
५. पञ्चवादनात् आरभ्य मन्दिरम् उद्घाटितम् भवति|
६. बाल्यकालात् आरभ्य एव कृष्ण: बहु चटुल: आसीत्|
७. पौषमासात् आरभ्य जयेष्ठमासपर्यन्तं उत्तरायण: आसीत् |
८. स: प्रतिदिनं सायङ्कालात् आरभ्य रात्रिपर्यन्तम् गीताभ्यासं करोति |
९. देव: सज्जनान् दुष्टेभ्य: रक्षति |
१०. आरक्षका: देशं चोरेभ्य: रक्षन्ति |
११. सैनिका: शत्रुभ्य: राष्ट्रं रक्षन्ति |
१२. हे देव, मां सङ्कतेभ्य: रक्ष |  
१३. चैत्रात् परं वैशाखमास: भवति | 
१४. शनिवासरात् परं रविवासर: भवति |
१५. परिश्रमात् परं फलं प्राप्नुवन्ति जना:|
१६. संस्कृतपाठनात् परं भवान् किं करिष्यति |
१७. मूषकस्य बिडालात् भीति: भवति | 
१८. भीरु तु अल्पात् अपि बिभेति |
१९. कस्मात् अपि मा भी: इति विवेकानन्द: गर्जितवान् |


२०. उत्तमा: जना: अधर्मात् बिभ्यति | 

अभ्यासः ३६.४.३ (पृष्ठसङ्ख्या ११३)
१. विनयात् 
२. पात्रत्वात् 
३. धनात् 
४. अन्नात् 
५. पर्जन्यात् 
६. यज्ञात् 
७. सङ्गात् 
८. कामात् 
९. क्रोधात् 
१०. सम्मोहात् 
११. स्मृतिभ्रंशात्  
१२. बुद्धिनाशात् 

 - ज्योति गावडे 

1 comment:

  1. कृपया चतुर्थी विभक्ति अपि करोतु । धन्यवादः

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